योग एवं मानसिक स्वास्थ्य इकाई 5

    योग एवं मानसिक स्वास्थ्य - इकाई5



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सृजनात्मक अभिवृत्ति के निर्माण में यम, नियम, आसन,प्राणायाम,और ध्यान का महत्व-

अष्टांग योग के अभ्यास से शारीरिक, मानसिक और आत्मिक उन्नति होकर क्रम से पंचविभाग वाली अविद्या नष्ट होती है। अविद्या के नाश हो जाने से तज्जन्य अंत:करण की अपवित्रता का क्षय होता है और आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है। जैसे-जैसे साधक योगांगों का आदरपूर्वक अनुष्ठान करता है, वैसे-वैसे ही उसके चित्त की मलिनता का क्षय होता है और मलिनता क्षय के परिणाम में उसके चित्त में ज्ञान की उत्कृष्टता होती जाती है। महर्षि पतंजलि ने यही बात अपने योगदर्शन में कही है-

योगाड़्गानुष्ठानादशुद्धिक्षये ज्ञानदीप्तिराविवेकख्याते:।। पांतजल योग सूत्र 2/28 
अर्थात योग के अंगों का अनुष्ठान करने से अशुद्धि का क्षय होने पर ज्ञान का प्रकाश विवेकख्याति पर्यन्त हो जाता है।

यम -जो अवांछनीय कार्यों से मुक्ति दिलाता है, निवृति दिलाता है वह यम कहलाता है।

नियम - नियम का तात्पर्य आन्तरिक अनुशासन से है। यम व्यक्ति के जीवन को सामाजिक एवं वाह्य क्रियाओं के सामंजस्य पूर्ण बनाते है और नियम उसके आन्तरिक जीवन को अनुशासित करते हैं।

आसन- आसन शब्द् संस्कृ्त भाषा के अस धातु से बना है जिनका दो अर्थ है। पहला है सीट बैठने का स्थान , दूसरा अर्थ शारीरिक अवस्था शरीर मन और आत्मा जब एक संग और स्थिर हो जाता है, उससे जो सुख की अनुभूति होती है वह स्थिति आसन कहलाती है।

प्राणायाम- प्राणायाम दो शब्दों से मिलकर बना है। प्राण + आयाम
प्राण का अर्थ होता है, जीवनी शक्ति, आयाम के दो अर्थ है। पहला- नियन्त्रण करना या रोकना तथा दूसरा लम्बा या विस्तार करना। प्राणवायु का निरोध करनाप्राणायामकहलाता है। योग सूत्र में प्राणायाम को इस प्रकार प्रतिपादित किया है

तस्मिन् सति श्वासप्रश्वापसयोर्गतिविच्छेलद प्राणायाम। 2/49 
अर्थातउसकी (आसनों की) स्थिरता होने पर श्वास-प्रश्वास की स्वाभाविक गति के नियमन करना ‘‘प्राणायाम है।

ध्यान - धारणा की उच्च अवस्था ध्यान है ध्यान शब्द की उत्पत्ति ध्येचित्तायाम् धातु से होती है जिसका अर्थ होता है, चिन्तन करना। किन्तु यहाँ पर ध्यान का अर्थ चिन्तन करना नहीं अपितु चिन्तन का एकाग्रीकरण अर्थात् चित्त को एक ही लक्ष्य पर स्थिर करना।

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