योग एवं मानसिक स्वास्थ्य-इकाई 1

     योग एवं मानसिक स्वास्थ्य - इकाई 1



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मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ बतलाते हुए , मासिक रूप से स्वस्थ्य व्यक्ति की विशेषताएं एवं प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन करें|

Answer-:मानसिक स्वास्थ्य से तात्पर्य वैसे अधिगमित व्यवहार से होता है जो सामाजिक रूप से अनुकूली होते हैं एवं जो व्यक्ति को अपनी जिन्दगी के साथ पर्याप्त रूप से सामना करने की अनुमति देता है।दूसरे शब्दों में मानसिक स्वास्थ्य व्यक्ति की उस स्थिति की व्याख्या है जिसमें वह समाज स्वयं के जीवन की परिस्थितियों से निबटने के लिए, आवश्यकता अनुरूप स्वयं को ढालने हेतु व्यवहारों को सीखता है।

पी.वी. ल्यूकन लिखते हैं कि-: मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति वह है जो स्वयं सुखी है, अपने पड़ोसियों के साथ शातिपूर्वक रहता है, अपने बच्चों को स्वस्थ नागरिक बनाता है और इन आधारभूत कर्तव्यों को करने के बाद भी जिसमें इतनी शक्ति बच जाती है कि वह समाज के हित में कुछ कर सके।

एक अन्य मनोवैज्ञानिक कार्ल मेन्निंगर (1945) के अनुसार-:मानसिक स्वास्थ्य अधिकतम प्रसन्नता तथा प्रभावशीलता के साथ संसार एवं प्रत्येक दूसरे व्यक्ति के प्रति मानवों द्वारा किया जाने वाला समायोजन है|

प्रसिद्ध विद्वान हारविज और स्कीड ने अपनी पुस्तक अप्रोच टू मेंटल हेल्थ एण्ड इलनेस में मानसिक स्वास्थ्य को परिभाषित करते हुए बताया है कि इसमें कई आयाम जुड़े हुए हैं-:आत्म सम्मान, अपनी अंत: शक्तियों का अनुभव, सार्थक एवं उत्तम सम्बन्ध बनाए रखने की क्षमता एवं मनोवैज्ञानिक श्रेश्ठता।’|

मनोवैज्ञानिकों की दृष्टि में मानसिक स्वास्थ्य


  1. मनोगत्यात्मक दृष्टि
  2. व्यवहारवादी दृष्टि
  3. मानवतावादी दृष्टि
  4. संज्ञानात्मक दृष्टि

यौगिक दृष्टि में मानसिक स्वास्थ्य


योग शास्त्रों में आधुनिक मनोविज्ञान की विभिन्न विचारधाराओं के समान मानसिक स्वास्थ्य के संप्रत्यय का विचार स्वतंत्र रूप से कहीं भी विवेचित अथवा प्रतिपादित नहीं हुआ है। क्योंकि यहॉं व्यक्ति को समग्रता में देखने की परंपरा रही है। आधुनिक मनोविज्ञान में व्यक्ति के अस्तित्व को जहॉं मन से जोड़कर देखा जाता रहा है वहीं योग की भारतीय विचारधारा में व्यक्ति का अस्तित्व आत्मा पर आधारित माना गया है। यहॉं मान का अस्तित्व आत्मा के उपकरण से अधिक कुछ भी नहीं है। जीवन का चरम लक्ष्य यहॉं अपने वास्तविक स्वरूप आत्म तत्व की उपलब्धि है। इसी को मोक्ष, निर्वाण, मुक्ति, आत्मसाक्षात्कार जैसी बहुत सी संज्ञाओं से विवेचित किया गया है। यौगिक दृष्टि से यही स्थिति व्यक्ति के अस्तित्व की पूर्णावस्था है, इसी अवस्था में व्यक्ति को मानसिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ कहा जा सकता है।

मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति की विशेषताएँ


    1 उच्च आत्म-सम्मान

    2आत्म-बोध होना

    3स्व-मूल्यॉंकन की प्रवृत्ति

   4सुरक्षित होने का भाव होना

   5संतुष्टि प्रदायक संबंध बनाने की क्षमता

   6दैहिक इच्छाओं की संतुष्टि

   7प्रसन्न रहने एवं उत्पादकता की क्षमता

   8बढ़िया शारीरिक स्वास्थ्य

   9 तनाव एवं अतिसंवेदनशीलता का अभाव

  10 वास्तविक प्रत्यक्षण की क्षमता

   11जीवन दर्शन स्पष्टता होना

   12स्पष्ट जीवन लक्ष्य होना

   13सकारात्मक चिंतन 
  14 ईश्वर विश्वास 
  15दूसरों से अपेक्षाओं का अभाव


  1. उच्च आत्म-सम्मान मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों के आत्म-सम्मान का भाव काफी उच्च होता है। आत्म-सम्मान से तात्पर्य व्यक्ति द्वारा स्वयं को स्वीकार किये जाने की सीमा से होता है। प्रत्येक व्यक्ति का स्वयं को यानि कि स्वयं के कार्यों को मापने का अपना एक पैमाना होता है जिस पर वह अपने गुणों एवं कार्यों, कुशलताओं एवं निर्णयों का स्वयं के बारे में स्वयं द्वारा बनाई गई छवि के आलोक में मूल्यॉकन करता है। यदि वह इस पैमाने पर अपने आप को स्वयं के पैमाने पर औसत से ऊपर की श्रेणी में अवलोकित करता है तब उसे गर्व का अनुभव होता है और परिणामस्वरूप उसका आत्म सम्मान बढ़ जाता है। वहीं यदि वह स्वयं को इस पैमाने में औसत से नीचे की श्रेणी में देखता है तो उसका आत्म सम्मान घट जाता है। इस आत्म-सम्मान का व्यक्ति के आत्म विश्वास से सीधा संबंध होता है। जो व्यक्ति स्वयं की नजरों में श्रेष्ठ होता है उसका आत्म-विश्वास काफी बढ़ा चढ़ा होता है, एवं जो व्यक्ति किसी कार्य के कारण अपनी नजरों में गिर जाता है उसके आत्म-विश्वास में भी गिरावट जाती है। परिणाम स्वरूप उसके आत्म-सम्मान को ठेस पहुचती है। जब यह आत्म-सम्मान बार बार औसत से नीचे की श्रेणी में आता रहता है अथवा लम्बे समय के लिए औसत से नीचे ही रहता है तब व्यक्ति में दोषभाव जाग्रत हो जाता है तथा उसे मानसिक समस्यायें अथवा मानसिक विकृतियॉं घेर लेती हैं।
  2. आत्म-बोध होनाजिन व्यक्तियों को अपने स्व का बोध होता है वे मानसिक रूप से अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा ज्यादा स्वस्थ होते हैं। आत्म बोध से तात्पर्य स्वयं के व्यक्तित्व से संबंधित सभी प्रकट एवं अप्रकट पहलुओं एवं तत्वों से परिचित एवं सजग होने से होता है। जब हम यह जानते हैं कि हमारे विचार कैसे हैं? उनका स्तर कैसा है? हमारे भावों को प्रकृति कैसी है? एवं हमारा व्यवहार किस प्रकार का है? तो इससे हम स्वयं के व्यवहार के प्रति अत्यंत ही स्पष्ट होते हैं। हमें अपनी इच्छाओं, अपनी प्रेरणाओं एवं अपनी आकांक्षाओं के बारे में ज्ञान होता है। साथ ही हमें अपनी सामथ्र्य एवं कमियों का भी ज्ञान होता है। ऐसी स्थिति वाले व्यक्ति जीवन में स्वयं एवं स्वयं से जुड़े लोगों के सम्बन्ध में सही निर्णय लेने में सक्षम होते हैं। ऐसे व्यक्ति मानसिक उलझनों के शिकार नहीं होते एवं फलत: उनका मानसिक स्वास्थ्य उत्तम स्तर का होता है।
  3. स्व-मूल्यॉंकन की प्रवृत्तिजिन व्यक्तियों में स्व-मूल्यॉंकन की प्रवृत्ति होती है वे मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं क्योंकि स्वमूल्यॉंकन की प्रवृत्ति उन्हें सदैव आईना दिखलाती रहती है। वे स्वयं के गुणों एवं दोषों से अनवरत परिचित होते रहते हैं एवं किसी भी प्रकार के भ्रम अथवा संभ्रांति कि गुंजाइश भी नहीं रहती है। ऐसे व्यक्ति अपने शक्ति एवं गुणों से परिचित होते हैं एवं जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में अपने गुण एवं दोषों के आलोक में फैसले करते हैं। इनमें तटस्थता को गुण होने पर अपने संबंध में किसी भी प्रकार की गलतफहमी नहीं रहती है तथा उचित फैसले करने में सक्षम होते हैं।
  4. सुरक्षित होने का भाव होना मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों में सुरक्षा का भाव बढ़ा-चढ़ा होता है। उनमें समाज का एक स्वीकृत सदस्य होने की भावना काफी तीव्र होती है। यह भाव उन्हें इस उम्मीद से प्राप्त होता है कि चूकि वे समाज के सदस्य हैं अतएव किसी भी प्रकार की विपरीत स्थिति उत्पन्न होने पर समाज के लोग उनकी सहायता के लिए आगे आयेंगे। समाज उनके विकास में सहायक होगा तथा वे भी समाज की उन्नति में अपना योगदान देंगे। ऐसे लोगों में यह भावना होती है कि लोग उनके भावों एवं विचारों का आदर करते हैं। वह दूसरों के साथ निडर होकर व्यवहार करता है तथा खुलकर हॅंसी-मजाक में भाग लेता है। समूह का दबाव पड़ने के बावजूद भी वह अपनी इच्छाओं को दमित नहीं करने की कोशिश करता है। फलत: मानसिक अस्वस्थता से सदैव दूर रहता है।
  5. संतुष्टि प्रदायक संबंध बनाने की क्षमतामानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों में परिवार एवं समाज के अन्य व्यक्तियों के साथ ऐसे संबंध विनिर्मित करने की क्षमता पायी जाती है जो कि उन्हें जीवन में संतुष्टि प्रदान करती है, उन्हें जीवन में सार्थकता का अहसास होता है एवं वे प्रसन्न रहते हैं। संबंध उन्हें बोझ प्रतीत नहीं होते बल्कि अपने जीवन का आवश्यक एवं सहायक अंग प्रतीत होते हैं। वे दूसरों के सम्मुख कभी भी अवास्तविक मॉंग पेश नहीं करते हैं। परिणामस्वरूप उनका संबंध दूसरों के साथ सदैव संतोषजनक बना रहता है।
  6. दैहिक इच्छाओं की संतुष्टिमानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों में अपनी शारीरिक इच्छाओं के संबंध में संतुष्टि का भाव पाया जाता है। उन्हें सदैव यह लगता है कि उनके शरीर अथवा शरीर के विभिन्न अंगों की जो भी आवश्यकतायें हैं वे पूरी हो रही हैं। प्राय: ऐसे व्यक्ति शारीरिक रूप से स्वस्थ होते हैं परिणाम स्व्रूप वे सोचते हैं कि उनके हृदय लीवर, किडनी, पेट आदि अंग अपना अपना कार्य सुचारू रूप से कर रहे हैं। दूसरे रूप में जब व्यक्ति के शरीर को आनन्द देने वाली आवश्कतायें जैसे कि तन ढकने के लिए वस्त्र, जिहवा के स्वाद पूर्ति के लिए व्यंजन, सुनने के लिए मधुर संगीत आदि उपलब्ध होते रहते हैं तो वे आनन्दित होते रहते हैं। साधन नहीं मिलने पर भी वे इनकी पूर्ति दूसरे माध्यमों से करने में भी सक्षम होते हैं। परिणामस्वरूप मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं। सरल शब्दों में कहें तो वे शारीरिक इच्छाओं के प्रति अनासक्त रहते हैं सुविधा साधन मिलने पर प्रचुर मात्रा में उपभोग करते हैं नहीं मिलने पर बिल्कुल भी विचलित नहीं होते एवं प्रसन्न रहते हैं।
  7. प्रसन्न रहने एवं उत्पादकता की क्षमता मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों में प्रसन्न रहने की आदत पायी जाती है। साथ ही ऐसे व्यक्ति अपने कार्यों में काफी उत्पादक होते हैं। उत्पादक होने से तात्पर्य इनके किसी भी कार्य के उद्देश्यविहीन नहीं होने से एवं किसी भी कार्य के धनात्मक परिणामविहीन नहीं होने से होता है। ये अपना जो भी समय, श्रम एवं धन जिस किसी भी कार्य में लगाते हैं उसमें कुछ कुछ सृजन ही करते हैं। इनका कोई भी कार्य निरर्थक नहीं होता है। सार्थक कार्यों को करते रहने से उन्हें प्रसन्नता के अवसर मिलते रहते हैं एवं प्रवृत्ति हो जाने पर वे खुशमिजाज हो जाते हैं। उनके संपर्क में आने पर दूसरे व्यक्तियों में भी प्रसन्नता का भाव उत्पन्न होता है।
  8. बढ़िया शारीरिक स्वास्थ्यमानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों का शारीरिक स्वास्थ्य भी उत्तम कोटि का होता है। कहा भी गया है कि स्वच्छ शरीर में ही स्वच्छ मन निवास करता है। शरीर की डोर मन के साथ बंधी हुई होती है। मन को शरीर के साथ बांधने वाली यह डोर प्राण तत्व से विनिर्मित होती है। यह प्राण शरीर में चयापचय एवं श्वास-प्रश्वास की प्रक्रिया के माध्यम से विस्तार पाता रहता है जिससे मन को अपने कार्यों केा सम्पादित करने के लिए पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा उपलब्ध होती रहती है। फलत: मन प्रसन्न रहता है।
  9. तनाव एवं अतिसंवेदनशीलता का अभाव मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों में तनाव एवं अतिसंवेदनशीलता का अभाव पाया जाता है। या यॅूं कहा जा सकता है कि इनके अभाव के कारण ये व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक लेजारस के अनुसार तनाव एक मानसिक स्थिति की नाम है। यह मानसिक स्थिति व्यक्ति के सम्मुख समाज एवं वातावरण द्वारा पेश की गयी चुनौतियों के संदर्भ में इन चुनौतियों से निपटने हेतु उसकी तैयारियों के आलोक में तनावपूर्ण अथवा तनावरहित के रूप में निर्धारित होती है। दूसरें शब्दों में जब व्यक्ति को चुनौती से निबटने के संसाधन एवं अपनी क्षमता में कोई कमी महसूस होती है तब उस कमी की मात्रा के अनुसार उसे कम या ज्यादा तनाव का अनुभव होता है। वहीं जब उसे अपनी क्षमता, अपने संसाधन एवं सपोर्ट सिस्टम पर भरोसा होता है तब उसे तनाव का अनुभव नहीं होता है। मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों को तनाव नही होने के पीछे उनकी जीवन की चुनौतियों को सबक के रूप में लेने की प्रवृत्ति होती है। ऐसे व्यक्ति जीवन में घटने वाली घटनाओं जैसे कि प्रशंसा या निन्दा से विचलित नहीं होते बल्कि वे इनका प्रति असंवेदनशील रहते हुए अपने ऊपर इनका अधिक प्रभाव पड़ने नहीं देते हैं।
  10. वास्तविक प्रत्यक्षण की क्षमता मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति किसी वस्तु, घटना या चीज का प्रत्यक्षण पक्षपात रहित होकर वस्तुनिष्ठ तरीके से करते हैं। वे इन चीजों को प्रति वही नजरिया या धारणा विनिर्मित करते हैं जो कि वास्तविकता होती है। वे धारणायें बनाते समय कल्पनाओं को, अपने पूर्वाग्रहों को भावसंवेगों को अपने ऊपर हावी होने नहीं देते हैं। इससे उन्हें सदैव वास्तविकता का बोध रहता है परिणामस्वरूप मानसिक उलझनों में वे नहीं पड़ते तथा मानसिक रूप से स्वस्थ रहते हैं।
  11. जीवन दर्शन स्पष्टता होनामानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों में जीवन दर्शन की स्पष्टता होती है। उनके जीवन का सिद्धान्त स्पष्ट होता है। उन्हें पता होता है कि उन्हें अपने जीवन में किस तरह से आगे बढ़ना है? क्यों बढ़ना है? कैसे बढ़ना है? उनका यह जीवन दर्शन धर्म आधारित भी हो सकता है एवं धर्म से परे भी हो सकता है। इनमें द्वन्द्वों का अभाव होता है। इनके जीवन में विरोधाभास की स्थितियॉं कम ही देखने को मिलती हैं।
  12. स्पष्ट जीवन लक्ष्य होनावे लोग जिनका जीवन लक्ष्य स्पष्ट होता है वे मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं। मनोवैज्ञानिक इसका कारण जीवन लक्ष्य एवं जीवन शैली में सामंजस्य को मानते हैं। उनके अनुसार जिस व्यक्ति के सम्मुख उसका जीवन लक्ष्य स्पष्ट होता है था तथा जीवन लक्ष्य को पूरा करने की त्वरित अभिलाषा होती है वह अपना समय निरर्थक कार्यों में बर्बाद नहीं करता है वह जीवन लक्ष्य को पूरा करने हेतु तदनुरूप जीवन शैली विनिर्मित करता है। इसे जीवन लक्ष्य को पूरा करने हेतु आवश्यक तैयारियों के रूप में देखा जा सकता है। जीवन लक्ष्य एवं जीवनशैली के बीच जितना सामंजस्य एवं सन्निकटता होती है जीवन लक्ष्य की पूर्ति उतनी ही सहज एवं सरल हो जाती है। परिणामस्वरूप ऐसे व्यक्तियों को जीवन लक्ष्य की प्राप्ति अवश्य होती है। इससे उन्हें जीवन में सार्थकता का अहसास सदैव से ही रहता है तथा वे प्रसन्न रहते हैं एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रहते हैं।
  13. सकारात्मक चिंतनजीवन के प्रति तथा दुनिया में स्वयं के होने के प्रति सकारात्मक नजरिया रखने वाले, तथा जीवन में स्वयं के साथ घटने वाली हर वैचारिक, भावनात्मक तथा व्यवहारिक घटना के प्रति जो सकारात्मक नजरिया रखते हैं उसके धनात्मक पक्षों पर प्रमुखता से जोर देते हैं। ऐसे व्यक्ति निराशा, अवसाद का शिकार नहीं होते हैं। उनमें नाउम्मीदी एवं निस्सहायता भी उत्पन्न नहीं होती है परिणामस्वरूप मानसिक रूप से स्वस्थ रहते हैं।
  14. ईश्वर विश्वासजिन व्यक्तियों में ईश्वर विश्वास कूट कूट कर भरा होता है ऐसे व्यक्ति भी मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं। मनोवैज्ञानिक इसका कारण उन्हें मिलने वाले भावनात्मक संबंल एवं सपोर्ट को मानते हैं। उनके अनुसार ईश्वर विश्वासी कभी भी स्वयं को अकेला एवं असहाय महसूस नहीं करता हैं। परिणाम स्वरूप जीवन की विषम से विषम परिस्थिति में भी अपने आत्म-विश्वास को बनाये रखता है। उसकी आशा का दीपक कभी बुझता नहीं है। अतएव वह मानसिक रूप से स्वस्थ रहता है।
  15. दूसरों से अपेक्षाओं का अभावऐसे व्यक्ति जो अपने कर्तव्य कर्मों को केवल किये जाने वाला कार्य समझ कर सम्पादित करते हैं एवं उस कार्य से होने वाले परिणामों से स्वयं को असम्बद्ध रखते हैं। दूसरों से प्रत्युत्तर में किसी प्रकार की अपेक्षा अथवा आशा नहीं करते हैं वे सदैव प्रसन्न रहते हैं। मनोवैज्ञानिक इसका कारण उनके मानसिक प्रसन्नता के परआश्रित नहीं होने की स्थिति को ठहराते हैं। ये व्यक्ति दूसरों के द्वारा उनके साथ किये गये व्यवहार से अपनी प्रसन्नता को जोड़कर नहीं रखते हैं बल्कि वे दोनों चीजों को अलग-अलग रखकर चलते हैं। परिणामस्वरूप भावनात्मक द्वन्द्वों में नहीं फंसते हैं एवं मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं।

मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक


1.      शारीरिक स्वास्थ्य के कारक

2.      प्राथमिक आवश्यकताओं की संतुष्टि

3.      मनोवृत्ति

4.      सामाजिक वातावरण

5.      मनोरंजन की सुविधा

  1. शारीरिक स्वास्थ्य के कारकव्यक्ति की शारीरिक स्थिति उसके मानसिक स्वास्थ्य के साथ सीधा संबंध होता है। दूसरें शब्दों में शारीरिक स्वास्थ्य व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला एक प्रमुख कारक है। हम सभी जानते हैं कि जब हम शारीरिक रूप से स्वस्थ होते हैं तब हम प्राय: सभी समय एक आनन्द के भाव का अनुभव करते रहते हैं एवं हमारी ऊर्जा का स्तर हमेशा ऊॅंचे स्तर का बना रहता है। जब कभी हम बीमार पड़ते हैं या शारीरिक रूप से अस्वस्थ हो जाते हैं उसका प्रभाव हमारी मानसिक प्रसन्नता पर भी पड़ता है हम पूर्व के समान आनंदित नहीं रहते तथा हमारी ऊर्जा का स्तर भी निम्न हो जाता है। कहने का अभिप्राय यह है कि हमारे शरीर एवं मन के बीच, हमारी शारीरिक स्वस्थता एवं मानसिक स्वस्थता के बीच परस्पर अन्योनाश्रित संबंध हैं। एक की स्थिति में बदलाव होने पर दूसरे में स्वत: ही परिवर्तन हो जाता हैं उदाहरण के लिए कैंसर के रोगियों में निराशा, चिंता एवं अवसाद सामान्य रूप में पाये जाते हैं। वहीं चिंता एवं अवसाद से ग्रस्त रोगियों को कई प्रकार की शारीरिक बीमारियॉं हो जाती हैं।
  2. प्राथमिक आवश्यकताओं की संतुष्टिआवश्यकताओं की संपुष्टि भी मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला एक प्रमुख कारक है। आवश्यकतायें कई प्रकार की होती हैं जैसे कि शारीरिक आवश्यकता, सांवेगिक आवश्यकता, मानसिक आवश्यकता आदि। इन सभी प्रकार की आवश्यकताओं में प्राथमिक आवश्कताओं की संतुष्टि का स्तर मानसिक स्वास्थ्य को सर्वाधिक प्रभावित करता है। प्राथमिक आवश्यकताओं में भूख, प्यास, नींद, यौन आदि आते हैं। इसके अलावा शारीरिक सुरक्षा के लिए घर आदि की जरूरत को भी प्राथमिक आवश्यकताओं में ही गिना जाता है। इन आवश्यकताओं की पूर्ति करने का लक्ष्य सदैव मनुष्य के सम्मुख उसके लिए अस्तित्वपरक चुनौति खड़ी करता रहा है। जब तक इन आवश्यकताओं की पूर्ति सहज रूप में होती रहती है तब तक व्यक्ति मानसिक रूप से उद्विग्न नहीं होता है परंतु जब इन आवश्यकताओं की पूर्ति में जब बाधा उत्पन्न होती है तब व्यक्ति में तनाव उत्पन्न हो जाता है। जिसके विभिन्न संज्ञानात्मक, सांवेगिक, अभिप्रेरणात्मक, व्यवहारात्मक आदि परिणाम होते हैं। इन परिणामों के फलस्वरूप व्यक्ति में चिंता, अवसाद आदि विभिन्न प्रकार की मनोविकृतियॉं जन्म ले लेती हैं।
  3. मनोवृत्तिमनोवैज्ञानिकों ने मनोवृत्ति को भी मानसिक स्वास्थ्य के उन्नति या अवनति में परिवर्तन करने वाला एक महत्वपूर्ण कारक माना है। व्यक्ति की मनोवृत्ति उसके मानसिक रूप से प्रसन्न रहने अथवा रहने का निर्धारण करती है। यह मनोवृत्ति मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है। पहली धनात्मक मनोवृत्ति एवं दूसरी नकारात्मक मनोवृत्ति। धनात्मक मनोवृत्ति को सकारात्मक मनोवृत्ति भी कहा जाता है। सकारात्मक मनोवृत्ति का संबंध जीवन की वास्तविकताओं से होने के कारण इसे वास्तविक मनोवृत्ति की संज्ञा भी दी जाती है। यदि व्यक्ति में किसी कारण से वास्तविकता से हटकर काल्पनिक दुनिया में विचरण करने की आदत बन जाती है तो ऐसे व्यक्तियों में घटनाओं, वस्तुओं एवं व्यक्तियों के प्रति एक तरह का अवास्तविक मनोवृत्ति विकसित हो जाती है। अवास्तविक मनोवृत्ति के विकसित हो जाने से उनमें आवेगशीलता, सांवेगिक अनियंत्रण, चिड़चिड़ापन आदि के लक्षण विकसित हो जाते हैं और उनका मानसिक स्वास्थ्य धीरे धीरे खराब हो जाता है।
  4. सामाजिक वातावरणसामाजिक वातावरण को भी मनोवैज्ञानिकों ने मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला एक मजबूत कारण माना है। व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज में रहता है। फलत: समाज में होने वाली अच्छी बुरी घटनाओं से वह प्रभावित होता रहता है। जब व्यक्ति समाज में एक ऐसे वातावरण में वास करता है जो कि अपने घटकों को उन्नति एवं विकास में सहायक होता है तथा समूह के सदस्यों को भी समाज अपनी उन्नति एवं विकास में योगदान देने का समुचित अवसर प्रदान करता है तो वह व्यक्ति स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता है परिणामस्वरूप ऐसे व्यक्ति को कभी भी अकेलापन महसूस नहीं होता है। वह अपने आप को समाज का एक स्वीकृत सदस्य के रूप में देखता है जिसके अन्य सदस्य उसके भावों का आदर करते हैं। वह स्वयं भी समाज के अन्य सदस्यों के भावों का आदर करता है। ऐसे सामाजिक वातावरण में निवास करने वाले व्यक्ति मानसिक रूप से अत्यंत स्वस्थ रहते हैं। तथा इनकी सामाजिक प्रसन्नता अनुभूति काफी बढ़ी चढ़ी रहती है। वहीं दूसरी ओर जब व्यक्ति इसके विपरीत प्रकार के समाज में निवास करता है जो कि उसकी उन्नति एवं विकास में सहायक हेाने के बजाय उसके उन्नति एवं विकास के मार्ग को अवरूद्ध ही कर देता है तो व्यक्ति की अपने अंदर छिपी असीम संभावनाओं को विकसित एवं अभिव्यक्त करने की आवश्यकता की पूर्ति नहीं हो पाती है। परिणामस्वरूप ऐसा व्यक्ति को अपनी इच्छाओं का दमन करना पड़ता है एवं कालान्तर में ऐसे व्यक्ति मानसिक रूग्णता का शिकार हो जाते हैं।
  5. मनोरंजन की सुविधामनोवैज्ञानिकों ने मनोरंजन की उपलब्धता को भी मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले एक प्रमुख कारक के रूप में मान्यता प्रदान की है। उनके अनुसार जिस व्यक्ति को जीवन में मनोरंजन करने के साधन या सुविधायें उपलब्ध होती हैं उस प्रकार के व्यक्ति अपने जीवन में मानसिक रूप से स्वस्थ रहते हैं। उनके अनुसार मनोरंजन के साघन अपने प्रभाव से व्यक्ति के मन को प्रसन्नता, एवं आह्लाद से भर देते हैं फलत: उसमें एक प्रकार की नवीन प्रफुल्लता जन्म लेती है जो कि उसके मस्तिष्क एवं मन को नवीन ऊर्जा से ओतप्रोत कर देती है। तंत्रिका मनोवैज्ञानिकों के अनुसार इससे स्नायुसंस्थान को सकारात्मक स्फुरणा प्राप्त होती है फलत: उसकी सक्रियता बढ़ जाती है। स्मृति आदि विभिन्न मानसिक प्रक्रियायें सुचारू रूप से कार्य करती हैं फलत: व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ रहता हैं। परन्तु यदि किसी कारण से किसी व्यक्ति को उसकी इच्छानुसार पर्याप्त मनोरंजन नहीं मिल पाता है तो उससे इनमें मानसिक घुटन उत्पन्न हो जाती है जो धीरे-धीरे उनके मानसिक स्वास्थ्य को कमजोर करती जाती है।

इस तरह यौगिक दृष्टि में मानसिक स्वास्थ्य की समस्या पर आत्यांतिक रूप से विचार किया गया है|

महर्षि पतंजलि ने समाधि को चित्त की वृत्तियों के निरोध की अवस्था माना है एवं यौगिक दृष्टि से यही मानसिक स्वास्थ्य की सामान्य अवस्था है। इस से पूर्व की सभी अवस्थाओं को चित्तवृत्तियों की विभिन्न अवस्थाओं के रूप में मानसिक स्वास्थ्य के विभिन्न स्तर निर्धारित किये जा सकते हैं। योगदर्शन में चित्त की पॉंच अवस्थाओं का वर्णन किया गया है। ये पॉच अवस्थायें हैं-

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