योग में अनुसन्धान एवं सांख्यिकीय विधियां - इकाई 1

योग में अनुसन्धान एवं सांख्यिकीय विधियां-इकाई 1


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अनुसन्धान की आवश्यकता के महत्व पर प्रकाश डालिये-:
Answer. अनुसन्धान को निम्नानुसार समझने का प्रयास करें तो -
     1)   अनुसंधान की  परिभाषा
    2)     अनुसंधान प्रक्रिया
    3)     अनुसंधान के प्रकार
    4)     भारतीय और पाश्चात्य शोध परम्परा की तुलना
    5)     महत्व
    6)     अनुसंधान में नैतिकता


अनुसंधान की  परिभाषा-:

'शोध' अंग्रेजी शब्द 'Research' का पर्याय है किन्तु इसका अर्थ 'पुनः खोज' नहीं है अपितु 'गहन खोज' है। इसके द्वारा हम कुछ नया आविष्कृत कर उस ज्ञान परम्परा में कुछ नए अध्याय जोड़ते हैं।
अनुसन्धान (Research) किसी भी क्षेत्र में 'ज्ञान की खोज करना' या 'विधिवत गवेषणा' करना होता है। वैज्ञानिक अनुसन्धान में वैज्ञानिक विधि का सहारा लेते हुए जिज्ञासा का समाधान करने की कोशिश की जाती है। नवीन वस्तुओं की खोज और पुराने वस्तुओं एवं सिद्धान्तों का पुनः परीक्षण करना, जिससे कि नए तथ्य प्राप्त हो सकें, उसे शोध कहते हैं।शोध उस प्रक्रिया अथवा कार्य का नाम है जिसमें बोधपूर्वक प्रयत्न से तथ्यों का संकलन कर सूक्ष्मग्राही एवं विवेचक बुद्धि से उसका अवलोकन-विश्लेषण करके नए तथ्यों या सिद्धांतों का उद्घाटन किया जाता है। अध्ययन से दीक्षित होकर शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करते हुए शिक्षा में या अपने शैक्षिक विषय में कुछ जोड़ने की क्रिया अनुसन्धान कहलाती है।

पी-एच.डी./ डी.फिल या डी.लिट्/डी.एस-सी. जैसी शोध उपाधियाँ इसी उपलब्धि के लिए दी जाती है|

परिभाषाएँ- अनुसंधान को विभिन्न तरीकों से परिभाषित किया गया है-

  • रैडमैन और मोरी ने अपनी पुस्तक रोमांस ऑफ रिसर्चमें शोध का अर्थ स्पष्ट करते हुए लिखा है कि नवीन ज्ञान की प्राप्ति के व्यवस्थित प्रयत्न को हम शोध कहते हैं।
  • लुण्डबर्ग ने शोध को परिभाषित करते हुए लिखा है कि अवलोकित सामग्री का संभावित वर्गीकरण, साधारणीकरण एवं सत्यापन करते हुए पर्याप्त कर्म विषयक और व्यवस्थित पद्धति है।
 
1)     अनुसन्धान प्रक्रिया

शोध के अंग

  • ज्ञान क्षेत्र की किसी समस्या को सुलझाने की प्रेरणा
  • प्रासंगिक तथ्यों का संकलन
  • विवेकपूर्ण विश्लेषण और अध्ययन
  • परिणामस्वरूप निर्णय
 2)     अनुसन्धान-प्रक्रिया के चरण
शोध एक प्रक्रिया है जो कई चरणों से होकर गुजरती है। शोध प्रक्रिया के प्रमुख चरण ये हैं-
  • () अनुसन्धान समस्या का निर्माण
  • () समस्या से सम्बन्धित साहित्य का व्यापक सर्वेक्षण
  • () परिकल्पना (हाइपोथीसिस) का निर्माण
  • () शोध की रूपरेखा/शोध प्रारूप (रिसर्च डिज़ाइन) तैयार करना
  • () आँकड़ों एवं तथ्यों का संकलन
  • () आँकड़ो / तथ्यों का विश्लेषण और उनमें निहित सूचना/पैटर्न/रहस्य का उद्घाटन करना
  • () प्राक्कल्पना की जाँच
  • () सामान्यीकरण (जनरलाइजेशन) एवं व्याख्या
  • () शोध प्रतिवेदन (रिसर्च रिपोर्ट) तैयार करना

3)     अनुसन्धान के प्रकार

शोध कार्य सम्पन्न करने हेतु विभिन्न प्रणालियों का प्रयोग किया जाता है अतः शोध के कई प्रकार होते हैं जैसे-

4)     भारतीय और पाश्चात्य शोध परम्परा की तुलना

पाश्चात्य शोध परम्परा विशेषज्ञता (Specialization) आधारित है। ज्ञान मार्ग में आगे बढ़ता हुआ शोधार्थी अपने विषय क्षेत्र में विशेषज्ञता और पुनः अति विशेषज्ञता प्राप्त करता है। शोध समस्या के समाधान की दृष्टि से यह अत्यन्त उपादेय है। भारतीय ज्ञान साहित्य की अविछिन्न परंपरा के प्रमाण से हम यह कह सकते हैं कि शोध की भारतीय परंपरा, जगत के अंतिम सत्य की ओर ले जाती है। अंतिम सत्य की ओर जाते ही तथ्य गौण होने लगते हैं और निष्कर्ष प्रमुख। तथ्य उसे समकालीन से जोड़तें है और निष्कर्ष, देश काल की सीमा को तोड़ते हुए समाज के अनुभव विवेक में जुड़ते जाते हैं। भारतीय वाङ्मय का सत्य एक ओर जहाँ विशिष्ट सत्य का प्रतिपादन करता है वहीं दूसरी ओर सामान्य सत्य को भी अभिव्यक्ति करता है। सामान्य सत्य का प्रतिपादन सर्वदा भाष्य की अपेक्षा रखता है। यही कारण है कि भारतीय वाड्मय में विवेचित अधिकांश तथ्यों की वस्तुगत सत्ता पर सदैव प्रश्नचिन्ह लगते हैं। वे अनुभव की एक थाती हैं। तथ्यों की वस्तुगत सत्ता से दूरी उसे थोड़ी रहस्यात्मक बनाती है, भ्रम की संभावना बनी रहती है। उसके निहितार्थ तक पहुँचने की लिए प्रज्ञा की आवश्यकता है। सम्पूर्णता का बोध कराने वाली यह व्यापक दृष्टि एक प्रकार की वैश्विक दृष्टि (Holistic Approach) है। मानविकी एवं समाज विज्ञान के विषयों ही नहीं अपितु समाज विज्ञान एवं प्राकृतिक विज्ञानों के अन्तरावलम्बन से वर्तमान ज्ञान तन्त्र में एक प्रकार के वैश्विक दृष्टि का प्रादुर्भाव होने लगा है, जिसकी सम्प्रति आवश्यकता प्रतीत होती रही है।

5)     महत्व

  • शोध मानव ज्ञान को दिशा प्रदान करता है तथा ज्ञान भण्डार को विकसित एवं परिमार्जित करता है।
  • शोध जिज्ञासा मूल प्रवृत्ति (Curiosity Instinct) की संतुष्टि करता है।
  • शोध से व्यावहारिक समस्याओं का समाधान होता है।
  • शोध पूर्वाग्रहों के निदान और निवारण में सहायक है।
  • शोध अनेक नवीन कार्यविधियों उत्पादों को विकसित करता है।
  • शोध ज्ञान के विविध पक्षों में गहनता और सूक्ष्मता लाता है।
  • शोध से व्यक्ति का बौद्धिक विकास होता है
  • अनुसन्धान हमारी आर्थिक प्रणाली में लगभग सभी सरकारी नीतियों के लिए आधार प्रदान करता है।
  • अनुसन्धान के माध्यम से हम वैकल्पिक नीतियों पर विचार और इन विकल्पों में से प्रत्येक के परिणामों की जांच कर सकते हैं।
  • अनुसन्धान, सामाजिक रिश्तों का अध्ययन करने में सामाजिक वैज्ञानिकों के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण है। शोध सामाजिक विकास का सहायक है।
  • यह एक तरह का औपचारिक प्रशिक्षण है।
  • अनुसन्धान नए सिद्धांत का सामान्यीकरण करने के लिए हो सकता है।
  • अनुसन्धान नई शैली और रचनात्मकता के विकास के लिए हो सकता है।

6)     अनुसंधान में नैतिकता

अनुसंधान ईमानदारी से की गई एक प्रक्रिया है।इसमें गहनता से अध्ययन किया जाता है और विवेक एवं समझदारी से काम लिया जाता है।चूँकि यह एक लंबी प्रक्रिया है अतः इसमें धैर्य की परम आवयश्कता होती है|


Q.2 अनुसंधान का महत्व  एवं सीमाओं का वर्णन कीजिये

A. 'शोध' अंग्रेजी शब्द 'Research' का पर्याय है किन्तु इसका अर्थ 'पुनः खोज' नहीं है अपितु 'गहन खोज' है। इसके द्वारा हम कुछ नया आविष्कृत कर उस ज्ञान परम्परा में कुछ नए अध्याय जोड़ते हैं।
अनुसन्धान (Research) किसी भी क्षेत्र में 'ज्ञान की खोज करना' या 'विधिवत गवेषणा' करना होता है। वैज्ञानिक अनुसन्धान में वैज्ञानिक विधि का सहारा लेते हुए जिज्ञासा का समाधान करने की कोशिश की जाती है। नवीन वस्तुओं की खोज और पुराने वस्तुओं एवं सिद्धान्तों का पुनः परीक्षण करना, जिससे कि नए तथ्य प्राप्त हो सकें, उसे शोध कहते हैं।शोध उस प्रक्रिया अथवा कार्य का नाम है जिसमें बोधपूर्वक प्रयत्न से तथ्यों का संकलन कर सूक्ष्मग्राही एवं विवेचक बुद्धि से उसका अवलोकन-विश्लेषण करके नए तथ्यों या सिद्धांतों का उद्घाटन किया जाता है। अध्ययन से दीक्षित होकर शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करते हुए शिक्षा में या अपने शैक्षिक विषय में कुछ जोड़ने की क्रिया अनुसन्धान कहलाती है।

शोध का महत्त्व
·         शोध के महत्त्व को सामान्य तौर पर हम निम्नलिखित रूप में देख सकते हैं--
·         शोध मानव-ज्ञान को दिशा प्रदान करता है, ज्ञान-भण्डार को विकसित एवं परिमार्जित करता है।
·         शोध से व्यावहारिक समस्याओं का समाधान होता है।
·         शोध से व्यक्तित्व का बौद्धिक विकास होता है।
·         शोध सामाजिक विकास का सहायक है।
·         शोध जिज्ञासा-मूलक प्रवृत्ति की सन्तुष्टि करता है।
·         शोध अनेक नवीन कार्य-विधियों एवं उत्पादों को विकसित करता है।
·         शोध पूर्वाग्रहों के निदान और निवारण में सहायक होता है।
·         शोध ज्ञान के विविध पक्षों में गहनता और सूक्ष्मता प्रदान करता है।
·         शोध नए सत्यों के अन्वेषण द्वारा अज्ञान मिटाता है, सच की प्राप्ति हेतु उत्कृष्टतर विधियाँ और श्रेष्ठ परिणाम प्रदान करता है।
·         किसी शोध को बेहतर शोध कहने के लिए आवश्यक है कि उसमें--
·         सामान्य अवधारणाओं के उपयोग द्वारा शोध के उद्देश्यों को स्पष्टता से परिभाषित किया गया हो।
·         शोध-प्रक्रिया की व्याख्या इतनी स्पष्ट हो कि सम्बद्ध प्रकरण पर आगामी शोध-दृष्टि निखरे और परवर्ती शोधार्थी इस दिशा में अनुप्रेरित हों।
·         शोध-प्रक्रिया की रूपरेखा इतनी सावधानी से नियोजित हो कि उद्देश्य-आधारित परिणाम प्राप्त हो सके।
·         शोध-प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए कोई शोधार्थी अपने ही शोध की कमियाँ उजागर करने में संकोच करे।
·         शोध-निष्कर्ष उपयोग किए गए आँकड़ों तक ही सीमित रहे।
·         शोध में उपयोग किए गए आँकड़े और सामग्रियाँ विश्वसनीय हों।
·         सुपरिभाषित पद्धतियों और निर्धारित नियमों के अनुपालन के साथ किए गए शोध की प्रस्तुति में शोधार्थी की विलक्षण क्षमता के साथ सुव्यवस्थित, तार्किक कौशल स्पष्ट दिखे।
  
   अनुसंधान की सीमायें-:

योग में अनुसन्धान की उपयोगिता एवं योग अनुसंधानों का विवरणात्मक परिचय-: 


 



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