योग एवं सांस्कृतिक समन्यवय एवं जैन परम्परा - इकाई 4


योग एवं सांस्कृतिक समन्यवय एवं जैन परम्परा-इकाई 4



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महात्मा बुद्ध के सिद्धांत-:

बुद्ध का वास्तविक नाम सिद्धार्थ था। उनका जन्म 563 .पू. में कपिलवस्तु (शाक्य महाजनपद की राजधानी) के पास लुंबिनी (वर्तमान में दक्षिण मध्य नेपाल) में हुआ था। इसी स्थान पर सम्राट अशोक ने बुद्ध की स्मृति में एक स्तम्भ बनाया था। सिद्धार्थ के पिता शाक्यों के राजा शुद्धोदन थे। परंपरागत कथा के अनुसार, सिद्धार्थ की माता महामाया उनके जन्म के कुछ देर बाद मर गयी थी। कहा जाता है कि उनका नाम रखने के लिये 8 ऋषियो को आमन्त्रित किया गया था, सभी ने 2 सम्भावनायें बताई थी, (1) वे एक महान राजा बनेंगे (2) वे एक साधु या परिव्राजक बनेंगे। इस भविष्य वाणी को सुनकर राजा शुद्धोदन ने अपनी योग्यता की हद तक सिद्धार्थ को साधु बनने देने की बहुत कोशिशें की। शाक्यों का अपना एक संघ था। बीस वर्ष की आयु होने पर हर शाक्य तरुण को शाक्यसंघ में दीक्षित होकर संघ का सदस्य बनना होता था। सिद्धार्थ गौतम जब बीस वर्ष के हुये तो उन्होंने भी शाक्यसंघ की सदस्यता ग्रहण की और शाक्यसंघ के नियमानुसार सिद्धार्थ को शाक्यसंघ का सदस्य बने हुये आठ वर्ष व्यतीत हो चुके थे। वे संघ के अत्यन्त समर्पित और पक्के सदस्य थे। संघ के मामलों में वे बहुत रूचि रखते थे। संघ के सदस्य के रूप में उनका आचरण एक उदाहरण था और उन्होंने स्वयं को सबका प्रिय बना लिया था।
पंचशील बौद्ध धर्म की मूल आचार संहिता है जिसको थेरवाद बौद्ध उपासक एवं उपासिकाओं के लिये पालन करना आवश्यक माना गया है।
भगवान बुद्ध द्वारा अपने अनुयायिओं को दिया गया है यह पंचशील सिद्धांत है ।
 
 1. हिंसा करना, 2. चोरी करना, 3. व्यभिचार करना, 4. झूठ बोलना, 5. नशा करना।

अर्थमैं प्राणि-हिंसा से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।

अर्थमैं चोरी से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।

अर्थमैं व्यभिचार से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।
अर्थमैं झूठ बोलने से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।
5. सभी नशा से विरत 
अर्थमैं पक्की शराब (सुरा) कच्ची शराब (मेरय), नशीली चीजों (मज्जपमादठटाना) के सेवन से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ।
बौद्ध धर्म में प्रमुख खण्ड सम्प्रदाय हैं: महायान, थेरवाद, वज्रयान, और नवयान, परन्तु बौद्ध सम्प्रदाय एक ही है एवं सभी गौतम बुद्ध के सिद्धान्त ही मानते हैं। बुद्ध की शिक्षाओं बुद्ध की शिक्षाओं का ज्ञान हमें पालि त्रिपिटक से ही प्राप्त होता है।
त्रिपिटक (तिपिटक) बुद्ध धर्म का मुख्य ग्रन्थ है। यह पालिभाषा में लिखा गया है। यह ग्रन्थ बुद्ध के परिनिर्वाण के पश्चात बुद्ध के द्वारा दिया गया उपदेशौं को सूत्रबद्ध करने का सबसे वृहद प्रयास है। बुद्ध के उपदेश को इस ग्रन्थ मे सूत्र (सुत्त) के रूप में प्रस्तुत किया गया है। सुत्रौं को वर्ग (वग्ग) में बांधा गया है। वग्ग को निकाय (सुत्तपिटक) में वा खण्ड में समाहित किया गया है। निकायौं को पिटक (अर्थ: टोकरी) में एकिकृत किया गया है। इस प्रकार से तीन पिटक निर्मित है जिन के संयोजन को त्रि-पिटक कहा जाता है।
गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद, बौद्ध धर्म के अलग-अलग संप्रदाय उपस्थित हो गये हैं, परंतु इन सब के बहुत से सिद्धांत मिलते हैं। तथागत बुद्ध ने अपने अनुयायीओं को चार आर्यसत्य, अष्टांगिक मार्ग, दस पारमिता, पंचशील आदी शिक्षाओं को प्रदान किए हैं।
बुद्ध के महापरिनिर्वाण के अगले पांच शताब्दियों में, बौद्ध सम्प्रदाय धर्म के रूप में पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैला और अगले दो हजार वर्षों में मध्य, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी जम्बू महाद्वीप में भी फैल गया। बौद्ध धर्म आज विश्व का चौथा सबसे बड़ा धर्म बन गया हैं।

बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग-:
भगवान्बुद्ध ने बताया कि तृष्णा ही सभी दु:खों का मूल कारण है। तृष्णा के कारण संसार की विभिन्न वस्तुओं की ओर मनुष्य प्रवृत्त होता है; और जब वह उन्हें प्राप्त नहीं कर सकता अथवा जब वे प्राप्त होकर भी नष्ट हो जाती हैं तब उसे दु: होता है। तृष्णा के साथ मृत्यु प्राप्त करनेवाला प्राणी उसकी प्रेरणा से फिर भी जन्म ग्रहण करता है और संसार के दु:खचक्र में पिसता रहता है। अत: तृष्णा का सर्वथा प्रहाण करने का जो मार्ग है वही मुक्ति का मार्ग है। इसे दु:-निरोध-गामिनी प्रतिपदा कहते हैं। भगवान्बुद्ध ने इस मार्ग के आठ अंग बताए हैं |
इस मार्ग के प्रथम दो अंग प्रज्ञा के और अंतिम दो समाधि के हैं। बीच के चार शील के हैं। इस तरह शील, समाधि और प्रज्ञा इन्हीं तीन में आठों अंगों का सन्निवेश हो जाता है। शील शुद्ध होने पर ही आध्यात्मिक जीवन में कोई प्रवेश पा सकता है। शुद्ध शील के आधार पर मुमुक्षु ध्यानाभ्यास कर समाधि का लाभ करता है और समाधिस्थ अवस्था में ही उसे सत्य का साक्षात्कार होता है। इसे प्रज्ञा कहते हैं, जिसके उद्बुद्ध होते ही साधक को सत्ता मात्र के अनित्य, अनाम और दु:खस्वरूप का साक्षात्कार हो जाता है। प्रज्ञा के आलोक में इसका अज्ञानांधकार नष्ट हो जाता है। इससे संसार की सारी तृष्णाएं चली जाती हैं। वीततृष्ण हो वह कहीं भी अहंकार ममकार नहीं करता और सुख दु: के बंधन से ऊपर उठ जाता है। इस जीवन के अनंतर, तृष्णा के होने के कारण, उसके फिर जन्म ग्रहण करने का कोई हेतु नहीं रहता। इस प्रकार, शील-समाधि-प्रज्ञावाला मार्ग आठ अंगों में विभक्त हो आर्य आष्टांगिक मार्ग कहा जाता है।
भगवान बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग का उपदेश दिया था। बौद्ध धर्म अनुयायी इन्हीं मार्गों पर चलकर मोक्ष प्राप् करते हैं। बुद्ध द्वारा बताए गए इन 8 मार्गों का अपना अलग मतलब है। आइए जानते हैं। 

भगवान बुद्ध का अष्टांगिक मार्ग :
भगवान बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग का उपदेश दिया था। बौद्ध धर्म अनुयायी इन्हीं मार्गों पर चलकर मोक्ष प्राप् करते हैं। बुद्ध द्वारा बताए गए इन 8 मार्गों का अपना अलग मतलब है। आइए जानते हैं। 
1. सम्यक दृष्टि :
चार आर्य सत्यों को मानना, जीव हिंसा नहीं करना, चोरी नहीं करना, व्यभिचार( पर-स्त्रीगमन) नहीं करना, ये शारीरिक सदाचरण हैं। इसके अलावा बुद्ध ने वाणी के सदाचरण का पाठ भी पढ़ाया। जिसमें मनुष्यों को झूठ बोलना, चुगली नहीं करना, कठोर वचन नहीं बोलने की शिक्षा दी गई। लालच नहीं करना, द्वेष नहीं करना, सम्यक दृष्टि रखना ये मन के सदाचरण है। 
2. सम्यक संकल्प :
चित्त से राग-द्वेष नहीं करना, ये जानना की राग-द्वेष रहित मन ही एकाग्र हो सकता है, करुणा, मैत्री, मुदिता, समता रखना, दुराचरण (सदाचरण के विपरीत कार्य) ना करने का संकल्प लेना, सदाचरण करने का संकल्प लेना, धम्म पर चलने का संकल्प लेना।
3. सम्यक वाणी :
सम्यक वाणी में आता है, सत्य बोलने का अभ्यास करना, मधुर बोलने का अभ्यास करना, धम्म चर्चा करने का अभ्यास करना। बौद्ध धर्म इंसान को मुधर वाणी सिखाता है।
4. सम्यक कर्म:
सम्यक कर्मांत में आता है, प्राणियों के जीवन की रक्षा का अभ्यास करना, चोरी ना करना, पर-स्त्रीगमन नहीं करना। बुद्ध ने सत्य और न्याय के लिए हिंसा को, यदि आवश्यक हो तो जायज ठहराया।
5. सम्यक आजीविका :
मेहनत से आजीविका अर्जन करना, पाँच प्रकार के व्यापार नहीं करना, जिनमे आते हैं, शस्त्रों का व्यापार, जानवरों का व्यापार, मांस का व्यापार, मद्य का व्यापार, विष का व्यापार, इनके व्यापार से आप दूसरों की हानि का कारण बनते हो।
6. सम्यक व्यायाम :
आष्टांगिक मार्ग का पालन करने का अभ्यास करना, शुभ विचार पैदा करने वाली चीजों/बातों को मन मे रखना, पापमय विचारो के दुष्परिणाम को सोचना, उन वितर्कों को मन मे जगह ना देना, उन वितर्कों को संस्कार स्वरूप मानना, गलत वितर्क मन मे आए तो निग्रह करना, दबाना, संताप करना।
7. सम्यक स्मृति :
कायानुपस्सना, वेदनानुपस्सना, चित्तानुपस्सना, धम्मानुपस्सना, ये सब मिलकर विपस्सना साधना कहलाता है, जिसका अर्थ है, स्वयं को ठीक प्रकार से देखना। ये जानना की राग-द्वेष रहित मन ही एकाग्र हो सकता है। किसी भी मनुष्य को, जिसे स्वयं को जानने की इच्छा हो, को विपस्सना जरूर करनी चाहिए, इसी से दुख-निवारण के पथ की शुरुआत होगी। 
8. सम्यक समाधि :
अनुत्पन्न पाप धर्मो को ना उत्पन्न होने देना, उत्पन्न पाप धर्मो के विनाश मे रुचि लेना, अनुत्पन्न कुशल धर्मो के उत्पत्ति मे रुचि, उत्पन्न कुशल धर्मो के वृद्धि मे रुचि। इन सबको शब्दशः पालन करने से जीवन सुखमय होगा, निर्वाण (सास्वत खुशी, परमानंद एवं विश्राम की स्थिति) की प्राप्ति होगी।

  1. सम्यक दृष्टि : चार आर्य सत्य में विश्वास करना
  2. सम्यक संकल्प : मानसिक और नैतिक विकास की प्रतिज्ञा करना
  3. सम्यक वाक : हानिकारक बातें और झूठ बोलना
  4. सम्यक कर्म : हानिकारक कर्म करना
  5. सम्यक जीविका : कोई भी स्पष्टतः या अस्पष्टतः हानिकारक व्यापार करना
  6. सम्यक प्रयास : अपने आप सुधरने की कोशिश करना
  7. सम्यक स्मृति : स्पष्ट ज्ञान से देखने की मानसिक योग्यता पाने की कोशिश करना
  8. सम्यक समाधि : निर्वाण पाना और स्वयं का गायब होना
भिक्षु के नियम-:
गौतम बुद्ध ने बौद्ध भिक्षुओं के लिए कुछ नियम तय किए थे जिनका मिला-जुला रुप ये था कि बौद्ध भिक्षु का जीवन पूरी तरह त्याग, वैराग्य और समाधि के आसपास ही रहेगा।
ये हैं बौद्ध भिक्षु बनने के कुछ सामान्य नियमः
1.      उम्र आमतौर पर किशोरावस्था में कोई व्यक्ति बौद्ध धर्म में भिक्षु का जीवन अपना सकता है। अगर माता-पिता और परिजनों की सहमति हो तो कम उम्र में भी दीक्षा दी जा सकती है। लेकिन, किसी भी आयु में बौद्ध भिक्षु बनने के लिए परिवार की सहमति बहुत जरुरी होती है।
2.      दीक्षा बौद्ध भिक्षु बिना दीक्षा के नहीं बन सकते। किसी बौद्ध गुरु से विधिवत दीक्षा के बाद सांसारिक रिश्तों और जीवन का त्याग करके ही बौद्ध भिक्षु बना जा सकता है।
3.      महिलाएं हालांकि शुरुआती दौर में गौतम बुद्ध बौद्ध मठों में महिलाओं के प्रवेश को लेकर तैयार नहीं थे। ये केवल पुरुषों के लिए था लेकिन समय बीतने के साथ महिलाओं को भी मठों में दीक्षा की अनुमति मिल गई।
4.      भिक्षा से भरण-पोषण बौद्ध भिक्षुओं का भोजन भिक्षा पर ही निर्भर रहता है। कई जगहों पर बौद्ध भिक्षुओं को कोई भी वस्तु खरीदने पर भी पाबंदी है, वे उन्हीं चीजों का उपयोग कर सकते हैं जो उन्हें दान में मिली हों।
5.      भोजन कई जगह बौद्ध भिक्षुओं के लिए नियम हैं कि वो केवल सुबह के समय एक बार ठोस आहार ले सकते हैं, दोपहर से अगले दिन की सुबह तक उन्हें लिक्विड डाइट पर ही रहना होता है।
6.      कपड़े बौद्ध भिक्षुओं के लिए तीन कपड़े रखना ही नियम है। दो शरीर पर लपेटने के लिए और एक चादर। ये तीन कपड़े भी किसी के त्यागे हुए या दान किए हों, बौद्ध भिक्षु खुद नहीं खरीद सकते।
7.      ध्यान और समाधि बौद्ध भिक्षुओं का सबसे बड़ा नियम होता है ध्यान। उन्हें अपनी साधना और समाधि की स्थिति को किसी भी अवस्था में नहीं छोड़ना होता है। ध्यान के जरिए कुंडलिनी जागरण ही उनका सबसे बड़ा उद्देश्य होता है।
8.      परम अवस्था ध्यान के जरिए समाधि की प्राप्ति, स्वाध्याय और कुंडलिनी जागरण के जरिए परम अवस्था को प्राप्त करना ही उनका ध्येय होता है।
9.      ध्यान का स्थान बौद्ध भिक्षुओं के प्रशिक्षण काल में उन्हें अलग-अलग वातावरण में भी ध्यान करने का प्रशिक्षण मिलता है। बहुत ठंडे या बहुत गर्म जगह, बहुत सुनसान या बहुत भीड़ वाली जगह। ऐसे अलग-अलग स्थान पर भी वो अपनी ध्यान की अवस्था का प्रशिक्षण लेते हैं।
हमारे भारत में हर संस्कृति हर धर्म के लोग हैं और हर धर्म की तरह दो जीवन शैलियां तय की गई हैंएक है सामान्य गृहस्थी और दूसरा संन्यास
बताते चलें कि ध्यान के जरिए समाधि की प्राप्ति, स्वाध्याय और कुंडलिनी जागरण के जरिए परम अवस्था को प्राप्त करना ही बौद्ध भिक्षुओं का ध्येय होता है। साथ ही बौद्ध भिक्षुओं के प्रशिक्षण काल में उन्हें अलग-अलग वातावरण में भी ध्यान करने का प्रशिक्षण मिलता है जैसे किबहुत ठंडे या बहुत गर्म जगह, बहुत सुनसान या बहुत भीड़ वाली जगह। इस तरह अलग-अलग स्थान पर भी बौद्ध भिक्षु अपनी ध्यान की अवस्था का प्रशिक्षण लिया करते हैं।

भारतीय संस्कृति को बौद्ध धर्म की देन-:
बौद्ध धर्म असमानता पर समानता के उद्देश्य से उदय हुआ | धन के संचय करने का विचार इसके मूल में था. गौतम बुद्ध के विचारों में मानव की घ्रणा, क्रूरता, हिंसा तथा दरिद्रता का मूल कारण धन ही हैं. बुद्ध का मानना था कि एक कृषक को उनके समस्त साधन मिलने चाहिए एक व्यापारी को अपने कारोबार की समस्त सुविधाए मिलती चाहिए तथा एक मजदूर को उसके हक की कमाई हासिल होनी चाहिए भारतीय संस्कृति को बौद्ध धर्म की देन निम्नलिखित रही हैं.

    1. सरल स्पष्ट और लोकप्रिय धर्म (Simple clear and popular religion)
    2.      वैदिक धर्म पर प्रभाव (Influence on Vedic religion)
    3.      मूर्तिपूजा का प्रसार (Promotion of idol worship)
    4.      संघ व्यवस्था (Union system)
    5.      आचार की शुद्धता (Purity of conduct)
    6.      धार्मिक सहिष्णुता (religious tolerance)
    7.      दर्शन का प्रभाव (Philosophy effect)
    8.      साहित्यिक क्षेत्र (Literary field)
    9.      लोक भाषाओं में उन्नति (Advancement in local languages)
    10.  कला के क्षेत्र में देन (Contribution to the field of art)
    11.  विचारों की स्वतंत्रता (Freedom of thought)
    12.  शिक्षा का प्रसार (Spread education)
    13.  सामाजिक समानता (social equality)
    14.  राजनीतिक प्रभाव (Political influence)
    15.  राजनीतिक तथा सामाजिक एकता (Political and social unity)
    16.  भारतीय संस्कृति का प्रसार विदेशों में (The spread of Indian culture abroad)



सरल स्पष्ट और लोकप्रिय धर्म (Simple clear and popular religion)
भारत में सर्वप्रथम बौद्ध धर्म ही एक लोकप्रिय धर्म के रूप में फैला. इसमें वैदिक धर्म की तरह कर्मकांड, यज्ञ, आदि नहीं थे जाति भेद था. इसके द्वार सभी के लिए खुले हुए थे. यह ऐसा धर्म था, जिसे आसानी से ग्रहण कर सकते थे. पहली बार धर्म में व्यक्तित्व को महत्व और प्रधानता दी गई.
वैदिक धर्म पर प्रभाव (Influence on Vedic religion)
बौद्ध धर्म ने हिन्दू धर्म को बहुत प्रभावित किया. बाह्य आडम्बर, यज्ञ अनुष्ठान आदि इस समय हिन्दुओं में प्रचलित थे. बौद्ध धर्म की शिक्षाओं के कारण वे कम हो गये थे. यज्ञों में पशुबलि की प्रथा समाप्त होती चली गई.
 
मूर्तिपूजा का प्रसार (Promotion of idol worship)
महायान सम्प्रदाय के बौद्ध लोगों ने बुद्ध की मूर्ति बनाकर उनकी पूजा करना शुरू कर दिया. उनका हिन्दू धर्म के अनुयायियों पर भी प्रभाव पड़ा. और उन्होंने अपने देवी देवताओं की मूर्तियाँ बनाकर उनकी पूजा करना शुरू कर दिया.
संघ व्यवस्था (Union system)
महात्मा बुद्ध ने बौद्ध भिक्षुओं के लिए संघ की व्यवस्था की थी. इन बौद्ध संघों के प्रचार में महत्वपूर्ण योगदान दिया. बौद्धों की मठ प्रणाली हिन्दू धर्म को भी प्रभावित किया. स्वामी शंकराचार्य ने भारत में चारों दिशाओं में मठों की स्थापना की.
आचार की शुद्धता (Purity of conduct)
बौद्ध धर्म ने दस शील को अपनाकर भारतीय जनता को नैतिकता, लोकसेवा और सदाचार का मार्ग दिखलाया.
धार्मिक सहिष्णुता (religious tolerance)
बौद्ध धर्म ने भारतीय समाज को धार्मिक सहिष्णुता का पाठ पठाया. बुद्ध ने दूसरे धर्मों की निंदा कभी नहीं की और बौद्धिक स्वतंत्रता पर बल दिया. इसका प्रभाव हिन्दू धर्म पर भी पड़ा.
दर्शन का प्रभाव (Philosophy effect)
बौद्ध विद्वान् नागार्जुन ने शून्यवाद तथा माध्यमिक दर्शन को प्रतिपादित किया. बौद्ध धर्म के अनात्मवाद, अनीश्वरवाद, प्रतीत्य समुत्पाद, कर्मवाद एवं पुनर्जन्मवाद, निर्वाण आदि दार्शनिक विचारों ने भारतीय चिंतन प्रणाली के विकास में योगदान दिया.
असंग, वसु, बन्धु, नागार्जुन, धर्म कीर्ति आदि से बौद्ध दार्शनिकों ने बौद्ध विचारधारा को विकसित किया और अपनी रचनाओं से भारतीय दार्शनिकों को प्रभावित किया. बौद्ध धर्म का खंडन करने के लिए अन्य सम्प्रदायों के दार्शनिक सामनें आए, इनमें शंकराचार्य का नाम प्रमुख हैं.
साहित्यिक क्षेत्र (Literary field)
साहित्य के क्षेत्र में भी बौद्ध धर्म की महान देन हैं. बौद्ध विद्वानों ने संस्कृत भाषा में अनेक ग्रंथों की रचना की जो भारतीय साहित्य की अमूल्य निधियाँ हैं. इस ग्रंथों में दिव्यावदान, बुद्धचरित, सौन्दरानन्द, महावस्तु, ललित विस्तार, मंजु श्री मूल कल्प, चान्द्र व्याकरण आदि प्रमुख हैं.
जातक कथाओं, विनयपिटक, सुतपिटक, अभिधम्मपिटक, मिलिन्दपन्हों, दीपवंश, महावंश आदि ग्रंथों की रचना पालि भाषा में की गई. बौद्ध साहित्य से हमें प्राचीन भारत का इतिहास जानने में भी बहुत सहायता मिलती हैं.
लोक भाषाओं में उन्नति (Advancement in local languages)
बौद्ध धर्म ने लोक भाषाओं के विकास में भी पर्याप्त योगदान दिया हैं. बौद्ध धर्म साधारण बोलचाल की भाषा द्वारा प्रचलित किया गया था. पालि साहित्य का प्रचार भी इसी कारण हुआ.
कला के क्षेत्र में देन (Contribution to the field of art)
कला के क्षेत्र में बौद्धों की महान देन रही हैं. गुहा गृहों, मन्दिरों और स्तूपों का निर्माण बौद्धों द्वारा हुआ. साँची और भरहुत के स्तूप तथा अशोक के शिला स्तम्भ बौद्ध कला के विशाल और सुंदर नमूने हैं. अजंता और बाघ की अधिकांश चित्रकारी बौद्ध कालीन हैं.
सम्राट अशोक के शिला स्तम्भ, कार्ले का गुहा मन्दिर तथा गया का बौद्ध मन्दिर तत्कालीन स्थापत्य कला के श्रेष्ठ नमूने हैं. बौद्धों के कारण भारत में मूर्ति कला के क्षेत्र में एक नई शैली का जन्म हुआ, जो गांधार शैली के नाम से प्रसिद्ध हैं.
विचारों की स्वतंत्रता (Freedom of thought)
बुद्ध ने अपने शिष्यों से कहा था कि उनके वचनों का अन्धानुकरण कर अपनी बुद्धि से परखना चाहिए. इस प्रकार बौद्ध धर्म ने बौद्धिक स्वतंत्रता को प्रोत्साहन दिया.
शिक्षा का प्रसार (Spread education)
शिक्षा के प्रसार में बौद्ध धर्म का विशेष योगदान रहा, नालंदा विश्वविद्यालय के द्वारा शिक्षा का व्यापक प्रसार हुआ. नालंदा, तक्षशिला और विक्रमशिला के विश्वविद्यालय तत्कालीन शिक्षा के प्रसिद्ध केंद्र थे. इन विश्वविद्यालयों ने भारतीय शिक्षा एवं भारतीय संस्कृति के प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
सामाजिक समानता (social equality)
बौद्ध धर्म के प्रभाव के फलस्वरूप हिन्दू समाज में प्रचलित जाति प्रथा के बंधन शिथिल होते चले गये तथा निम्न वर्ग के लोगों में आत्म विश्वास तथा आत्म सम्मान की भावनाएं उत्पन्न हुई.
राजनीतिक प्रभाव (Political influence)
राजनीतिक क्षेत्र में बौद्ध धर्म की सबसे बड़ी देन यह है कि अहिंसा का उपदेश देकर इसने भारतीय नरेशों तथा सम्राटों के ह्रदय में रक्तपात तथा युद्ध के प्रति घ्रणा उत्पन्न कर दी. बौद्ध धर्म से प्रभावित होने के कारण ही सम्राट अशोक ने युद्ध करने का संकल्प लिया था. बौद्ध धर्म ने भारतीय शासकों को समाज सेवा तथा लोककल्याण का पाठ पढ़ाया.
 
राजनीतिक तथा सामाजिक एकता (Political and social unity)
बौद्ध धर्म से राष्ट्रीयता की भावना को प्रोत्साहन मिला. बौद्धों के जाति विरोध तथा समानता के सिद्धांत ने इस भावना को मजबूत बनाया. निर्वाण का द्वार ऊंच नीच और धनी निर्धन सबके लिए द्वार खोलकर समाज में एकता उत्पन्न की. भारत के कोने कोने में धर्म का प्रसार कर बौद्ध भिक्षुओं ने एकता की भावना जागृत की.
भारतीय संस्कृति का प्रसार विदेशों में (The spread of Indian culture abroad)
इस धर्म के द्वारा भारतीय संस्कृति का प्रसार चीन, जापान, मंगोलिया, बर्मा, लंका, अफगानिस्तान, जावा, सुमात्रा आदि में हुआ. ये देश भारत को एक तीर्थ समझने लगे. यह बौद्ध धर्म की सबसे बड़ी देन हैं.











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